श्राद्ध पर एक नेताजी...

श्राद्ध पर एक नेताजी...


 
कल हमारे दादाजी का श्राद्ध था, खीर पुड़ी बनी। एक पंडित जी और कुछ गिने चुने लोगों के साथ टिकट की दौड़ में शामिल एक नेताजी को भी भोजन पर बुला लिया ..

क्या पता, किस्मत हो, इनको टिकट मिल जाये… और जीत जाये…!! 
दो कटोरी खीर ही तो पियेगें। जीवन में हजार लफड़े है । कभी काम पड़ा तो ये दो कटोरी खीर याद दिला देगें।
(इस सोच पर श्रीमतीजी भी सहमत  थी)

हमारे निमन्त्रण पर नेताजी आ भी गये ..  हार्डिंग्स वाले फोटो की तरह हाथ जोड़ हुए..  कुर्ता भी वही था.. ।

नेताजी के लिए हमने टेबल कुर्सी लगायी पर बोले की   "अरे.. ये सब रहने दो .. यहीं नीचे ही इन सब लोगों के साथ बैठ जाऊंगा। 

उनका ये कुर्सी त्याग नीचे बैठे लोगों पर अहसान था। जिसके बदले वे वोट चाहते थे। 

नेताजी को थाली परोसी गयी, उन्हौने हाथ जौडे,आंखे बन्द करके दादाजी को श्रृद्धाजंली दी.. । 

फिर एकाएक थोड़े उदास हो गये।  खीर खाने के लिए भी मना कर दिया…  इसे रहने दो.."

मैने कहा "  अरे सर क्या हो गया .. ये खीर तो खानी ही है… अभी शर्मा जी के रिटायर्डमेन्ट पर तो आपने पूरी पांच कटोरी पी थी .. अब क्या शुगर… ?

बोले " अरे नहीं नहीं.. शुगर फुगर का अपने क्या काम… बस .. ये जरा टिकट की लिस्ट आ जाये तो कुछ पता चले…. इसी चक्कर में आजकल कुछ भाता ही नहीं है .. । 

मैने कहा .. सर..  आपका टिकट तो पक्का है.. ऐसे खाना छोड देगें तो आपका श्राद्ध हो जायेगा…
 
अपने "श्राद्ध" का नाम सुनते ही तुरंत खीर की कटोरी उठायी और दो घूंट में पूरी गटक कर नीचे रखी दी । 

 फिर बोले .. आप सबके आर्शीवाद से इस बार टिकट तो मिलना चाहिए… मेरी पूरी तैयारी है। शहर में चार सौ से ज्यादा तो हार्डिंग्स लगवा दिये है। कोई चालीस चक्कर जयपुर के लगा चुका हूं। उपर से सबकी तरफ से भी लगभग "हां" ही है…   फिर भी..

"फिर भी क्या..?? मैने उनकी खाली कटोरी में फिर से खीर भरते हुए पूछा
 
वे बोले कि इन बड़े नेताऔ ने जैसे मुझे "हां" बोल रखा है वैसे ही दूसरों को भी "हां" बोल रखा है..  यहीं समझ नहीं आता कि आखिर ये लोग टिकट देगें किसको.. ?

" सर..,  कहीं टिकट के लिए कोई लेन देन वाला चक्कर तो नहीं है… ? ऐसा ना हो कि कहीं कोई पैसे वाला इसमें बाजी मार ले और आप… 

"अरे नहीं..नहीं.. ऐसा कैसे हो सकता है… मैनें भी कर रखा है इशारा… पूरी तैयारी भी है…  पर कोई बोले तो सही… सूटकेस भरा पड़ा है।

फिर एक पुड़ी पर मिर्ची के गट्टे रख के मुहं में रखा और चबाते हुए बोले कि… टिकट लाना आसान काम नहीं है.. पर देखो ..जो पार्षद के लायक नहीं वे भी विधायक का टिकट मांग रहे है… 

" सर.. वैसे एक विधायक बनने के लिए क्या क्या खास बातें होनी चाहिए… मैनें यूंही थोड़ी चुटकी ली तो नेताजी सकपका गये.. 

"खास.. ??  खास क्या.. खास तो सब होना चाहिए… जैसे मैं जनता के लिए खास हूं...  कल ही एक स्कूल में चार पंखे भिजवाये है . हमारे ही बच्चे है, परेशान कैसे देख सकता हूं .. मैं हर कौम की फ्रिक करता हूं । रिलेशन मेन्टन करता हूं.. । इतना तो होना ही चाहिए 

अब वे खाना खाकर कुर्सी पर आ गये थे..  मैनें चर्चा जारी रखी…

" सर.. बताइये..  आपने शहर के लिए क्या सोच रखा है.. कोई प्लान.. कोई योजना.. यहां का उद्योग,  ट्रेफिक व्यवस्था, विकास, पर्यटन … कुछ बतायेगें क्या.?  कुछ सोच रखा है .? 

नेताजी बोले .. सोच नहीं रखा है तो क्या हुआ..  अब सोच लेंगें.. वैसे आज तक किसी ने अपनी सोच बतायी क्या? और चलो.. बता भी दे तो विश्वास कौन करेगा… ???   चुनावों में कोई राजा हरिशचन्द्र जैसे लोग खड़े होते है क्या??  

यहां तो भाई… सीधा फंडा है..चुनाव लडना है तो कूद जाऔ, हार्डिंग्स लगाकर भर दो शहर को…  आगे सेंटिग बैठाऔ…  और फिर टिकट मिल जाये तो ठीक .. और ना मिले तो भी बैठने का तो कुछ ना कुछ तो ले ही पड़ो.. 

मैं चुपचाप सुने जा रहा था.. । बाकि लोग भी चुप ही थे.. वैसे भी जनता बोलती कहां है। सुनती ही है ।

एक छोटी सी चुप्पी के बाद उन्हौनै थोड़ा गंभीर होकर जेब से एक टूथपिक निकाली और दांत खुरचते हुए बोले कि..  " चुनाव लड़ो तो हजार गीत गाने पड़ते है.. और सच कहूं तो जनता भी गीतों का ही मजा लेती है …    शहर के लिए कौन सोचता है...  और भाई,
जैसा जनता सोचती है.. वैसा ही हम सोचते है..

हां.. ये अखबार वाले ..गढ्डे, सड़के, विकास..आदि पर जरूर लिखते है… आप जैसे लोग कार्टून बनाते है तो हमें गर्व होता है कि हमारे शहर की मीडिया.. यहां के लोग जागरूक है और हमारी तरह शहर के लिए सकारात्मक सोच रखते है... हम सबको मिलकर... 

इधर नेताजी असली भाषण के मूड में आने लगे तो भीतर से श्रीमतीजी ने भी मुझे हाथ जोड़कर इनको विदा करना का इशारा किया… मैं तुरंत उठ गया। 

"… चलिये… और पधारना सर..  मैने उनको प्रणाम करके भाषण वहीं रोक दिया। .. 

वे भी एक लम्बी सांस लेकर चुप हो गये और हाथ जोड़ते हुए चले गये।

उनको दरवाजे तक विदा करके मैं फिर भीतर आ गया.. जहां श्रीमतीजी के साथ साथ इस बार तस्वीर में दादाजी भी मुस्कुरा रहे थे.. । 
(Kg kadam)

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